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Friday, 3 July 2020

उत्तराखंड पहाड़ों की गोद में बसी ऐसी ही एक मज़ेदार और रोचक कहानी है स्वर्ग की सीढ़ियों की!

उत्तराखंड पहाड़ों की गोद में बसी ऐसी ही एक मज़ेदार और रोचक कहानी है स्वर्ग की सीढ़ियों की! 
अगर आप इतिहास में रूचि रखते हैं तो आप भारत में जहाँ भी जाएँ आपको इतिहास के ऐसे अजीब किस्से कहानियाँ मिलेंगी जो की आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी। हर पर्वत, हर पहाड़ और हर नदी के साथ जुडी हैं कहानियाँ। और अगर देव भूमि उत्तराखंड में घूमने की बात करें तो यहाँ पर तो हैरान करने वाली दिलचस्प कथाओं का कोई अंत ही नहीं है।

पहाड़ों की गोद में बसी ऐसी ही एक मज़ेदार और रोचक कहानी है स्वर्ग की सीढ़ियों की! इस कहानी के बारे में आपने अक्सर समाचार चैनलों में डाक्यूमेंट्री दिखी होगी। मुझे कभी इस जगह को लेकर खास दिलचस्पी नहीं हुई, लेकिन मेरा ये खयाल तब बदल गया जब मैंने गढ़वाल में वैली ऑफ फ्लावर के सफर के दौरान अपनी यात्रा को एक नया मोड़ देकर बद्रीनाथ जाने की सोची। मैंने इन पौराणिक कथाओं से जुड़ी जगहों को करीब से देखा और जाना। इससे जुड़ी दिलचस्प कहानियों को माना गाँव के लोगों से सुना, ये ही वो गाँव है जहाँ से स्वर्गारिहिनी और सतोपंथ झील ट्रेक की शुरुआत होती है।

क्या है कहानी स्वर्ग की सीढ़ियों की?
महाभारत के 18 अध्यायों में 17वे अध्याय, महाप्राथनिका पर्व, में लिखा है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पाँचों पांडव भाइयों ने अपनी पत्नी द्रौपदी में साथ सन्यास ले लिया और महल और राज्य को छोड़, तपस्या के लिए निकल पड़े। तपस्या का ये सफर उन्हें हिमालय के पहाड़ों के बीच ले आया। स्वर्ग की और अपने इस आखिरी सफर पर बढ़ते हुऐ हर किसी को एक-एक कर अपने कर्मों का फल मिलने लगा। सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई। उनका दोष था बाकियों के मुकाबले अर्जुन से उनका ज्यादा प्रेम। सहदेव इस यात्रा को पूरा न कर सके और मारे गए क्योंकि उनको अपने ज्ञान पर बहुत घमंड था। इसके बाद नकुल और अर्जुन की मृत्यु हुई जिसका कारण भी उनका अभिमान था। फिर भीम की बारी आयी और उनका दोष था उनका लालच।
 
ये लम्बी यात्रा पांडवों को हिमालय की गोद तक ले कर तो गयी पर युधिष्ठिर को छोड़ एक-एक कर सबकी मृत्यु हो गयी। यह माना जाता है की एक कुत्ते के भेस में छुपे धर्म के साथ युधिष्ठिर ने स्वर्ग की सीढ़ियां यहीं चढ़ी थी। महाभारत के इस अंश में यह भी बताया जाता है कि बिना मानवीय शरीर छोड़े यही स्वर्गरोहिणी का रास्ता है जहाँ से आप स्वर्ग जा सकते हैं।

सतोपंथ झील और स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर तक का सफर
 जून और अगस्त के महीने में अगर आप बद्रीनाथ आएँगे तो आपको ऐसे कई साधू संत मिलेंगे जो बद्रीनाथ से सतोपंथ और स्वर्गरोहिणी का सफर तय करते हैं। माना जाता है कि सतोपंथ झील का यह सफर असली मायने में सत्य के पथ की यात्रा है। स्वर्गरोहिणी तक की यात्रा के बारे में माना जाता है कि ये साक्षात स्वर्ग के मार्ग पर चलने के बराबर है। यहाँ आने वाले सभी हिन्दू तीर्थयात्री यह मानते हैं कि मानवीय शरीर के साथ अगर आप पूरी धरती में कहीं से भी स्वर्ग जा सकते हैं तो वो स्वर्गरोहिणी ग्लेशियर का मार्ग है।
सुबह-सुबह बद्रीनाथ धाम में एक भव्य पूजा-अर्चना के बाद यहाँ से सभी साधू संत अपनी यात्रा शुरू करते हैं। बद्रीनाथ से 4km की दूरी पर माना गाँव है। ये गाँव इस रास्ते पर पड़ने वाला आखिरी गाँव है जहाँ आपको इंसानी सभ्यता मिलेगी। ये गाँव भारत-चीन की सीमा का आखरी गाँव भी है। श्रद्धलुओं के लिए रास्ते में रुकने के लिए बहुत-सी जगह हैं जैसे नाग- नागिनी मंदिर, भृगु गुफा और माता मूर्ति मंदिर जो धर्म के देवता की पत्नी को समर्पित है। अलकनंदा के साथ- साथ चलें तो इस रास्ते में आगे आता है आनंदवन। यहाँ के नज़ारेऔर दूर-दूर तक हरे पेड़ और घास के मैदान देख कर आपको एहसास हो जाएगा कि आखिर इस जगह को आनंद-वन क्यों कहा जाता है। यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर है वसुंधरा जल प्रपात। हालांकि इस रास्ते में सभी रुकने की जगहों के बारे में किस्से और कहानियां हैं पर वसुंधरा के बारे में एक दिलचस्प कथा काफी मशहूर है। लोग यह मानते हैं की किसी भी दोषी या पापी के सर पर वसुंधरा का पानी नहीं गिरता।
इस यात्रा में आगे आता है लक्ष्मी वन। लक्ष्मी वन जाना जाता है भोज पत्र के घने पेड़ों के जंगल के लिए। प्राचीन काल में इन भोज पत्र के पेड़ों की छाल पर ही कई ग्रन्थ लिखे गए थे। माना जाता है कि पांडवों की यात्रा के दौरान नकुल की मृत्यु लक्ष्मी वन में ही हुई थी। स्वर्गरोहिणी जाने वाले यात्री पहली रात इसी लक्ष्मी वन में रुकते हैं।
लक्ष्मी वन से अगले दिन कुछ ही दूर चलकर यात्री सहस्त्रधारा पहुँचते हैं। ग्रेनाइट के एक टीले से गिरता हुआ ये झरना सचमुच मन छू लेता है। पांडवों के एक और भाई सहदेव की मृत्यु यहाँ हुई थी। इस जगह से आगे बढ़कर आस-पास के नज़ारे और भी सुन्दर हो जाते हैं। अगर आप मैप में देखें तो आप इस वक़्त ठीक केदारनाथ के पीछे वाली पहाड़ी पर होंगे। इस यात्रा में अगली जगह है चक्रतीर्थ गुफाएं। काफी लोग रात यहाँ बिताना भी पसंद करते हैं पर अगर आप चल सकें तो यहाँ से कुछ ही दूरी पर सतोपंथ झील है और रात वहाँ बिताना ज्यादा बेहतर होता है। सतोपंथ झील के बारे में किस्से कहानियां बहुत हैं पर ये वो जगह भी है जहाँ भीम ने अपनी अंतिम सासें ली थी। सैलानी यहाँ आकर रात को साधु संतों की झोपड़ियों में रात बिताते हैं। कुछ लोग अपने लिए गुफाएँ ढूंढ लेते हैं या टेंट बना लेते हैं।
सतोपंथ झील में एक दिन बिताने के बाद आगे बढ़ कर लोग स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर के दर्शन करने जाते हैं। ज्यादातर यात्री सतोपंथ से ही वापस चले जाते हैं, पर इस रास्ते पर आगे चंद्र कुंड और सूर्य कुंड के दर्शन करके स्वर्गरोहिणी साफ़-साफ़ दीखता है। इस ग्लेशियर के सीढ़ीनुमा आकार को ही स्वर्ग की सात सीढ़ियां माना जाता है। हालाँकि किसी भी समय पर यहाँ कोहरे और बर्फ के कारण तीन से ज्यादा सीढ़ियां नहीं दिखती हैं।
कैसे कर सकते हैं ये यात्रा?

बद्रीनाथ के आस-पास ऐसे बहुत सारे ट्रेक्स हैं जहाँ लोग आज भी जाते हैं। फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब में तो लोगों का तांता लगा ही रहता है, पर कम ही लोग जानते हैं की बद्रीनाथ से वसुंधरा फॉल्स, सतोपंथ झील और स्वर्गरोहिणी ग्लेशियर तक भी ट्रैकिंग की जा सकती है। इसके लिए बद्रीनाथ पहुंचने पर वहां मौजूद ट्रैकिंग एजेंसी में आप बात कर सकते हैं। कई ट्रैकिंग एजेंसी हैं जो आपको इस यात्रा में ले जा सकती हैं.





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सिक्किम के इस छोटे से गाँव में बिताएँ छुट्टियाँ


सिक्किम के इस छोटे से गाँव में बिताएँ छुट्टियाँ


सुंदर, शांत और रंगो से भरा हुआ- सिक्किम की जादुई खूबसूरती को बयां करने के लिए ये शब्द कुछ कम पड़ जाते हैं। कंचनजंगा पर्वत की उँचाईयों से घिरे इस राज्य में कई छोटे-छोटे गाँव हैं जहाँ आप कुछ सुंदर शामें बिता सकते हैं। और मेरी मानों तो भीड़-भाड़ वाली टूरिस्ट जगहों को छोड़ आप इन गाँवों में घूमने जाएँ तो आपको ज़्यादा मज़ा आएगा। इको-टूरिज्म अपनाते ये गाँव अब अपनी शांति, सादगी और प्रकृति के खूबसूरत नज़ारों के लिए मुसाफिरों की पसंद बन रहे हैं। ऐसी ही एक जगह है यांगांग।


 यांगांग
दक्षिण सिक्किम में बसा यांगांग एक तरफ पहाड़ों से घिरा है और दूसरी तरफ घने हरे-भरे जंगल हैं। यह शांति से एक सप्ताहांत बिताने के लिए एक बढ़िया जगह है। खुशमिज़ाज और मिलनसार गाँव वाले खुले दिल और नर्म मुस्कुराहट के साथ आपका स्वागत करेंगे और आप सिक्किम के आतिथ्य का स्वाद ले सकते हैं।

यांगंग की पहाड़ी की चोटी पर एक बंगला है जहाँ से आप भालेदुंगा पहाड़ियो और उफनती तीस्ता नदी घाटी का एक मनोरम दृश्य देख सकते हैं। गाँव में भी कुछ होम स्टे भी हैं जहाँ आप ठहर सकते हैं।

 यांगांग में क्या करें
आराम करें और खुद को तरोताज़ा करें
यह जगह इतनी खूबसूरत है कि आप यांगांग में आराम से बैठकर रिलैक्स कर सकते हैं। सुबह-सुबह, पक्षियों की मधुर चहक के साथ आपके दिन की शुरुआत होगी। शहर की हलचल और शोर-शराबे से दूर इस जगह की खामोशी आपको पसंद आएगी।

बर्डवॉचिंग के लिए जाएँ

ये खूबसूरत गाँव बर्डवॉचर्स का स्वर्ग है। यह हिमालयी पक्षियों की कुछ दुर्लभ और विदेशी प्रजातियों जैसे फ्लाईकैचर, सुल्तान टिट, मिनिवेट्स का घर है। मानेम वाइल्डलाइफ सैंकचूरी से नज़दीक होने के कारण, आप पास के जंगलों और गाँव में बड़ी संख्या में पक्षियों को देख पाएँगे। भले ही आप बर्डवॉचर्स न हों, मगर इन सुंदर पक्षियों की तलाश में कुछ समय बिताएँ और उनके बारे में जानने की कोशिश करें,अनुभव काफी अच्छा होगा।


गाँव में सैर लगाँए
यांगंग में ही कुछ आकर्षण हैं। एक लेप्चा हेरिटेज संग्रहालय है जहाँ आप लेप्चा संस्कृति की विभिन्न कलाकृतियों को देख सकते हैं। आपको यहाँ लेप्चा परंपराओं और संस्कृति के बारे में जानकारी मिलेगी। गाँव से सिर्फ 3 कि.मी. दूर एक हेलीपैड भी है। एक और मुख्य आकर्षण घने जंगलों से घिरी टिग चो झील है। स्थानीय मठ एक और दिलचस्प जगह है। मठ के पास के गाँव में गुरु पद्मसंभव की एक रॉक पेंटिंग है।


रवांगला जाएँ
रवांगला दक्षिण सिक्किम का एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है जो यांगंग से लगभग 24 कि.मी. दूर है। आप रवांगला की एक दिन की यात्रा कर सकते हैं और बुद्ध पार्क, जो भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा के लिए जाना जाता है, वहाँ भी जा सकते हैं। रावंगला में देखने के लिए रवांगला मठ और मेनाम वन्यजीव अभयारण्य कुछ और आकर्षणों में से हैं।


 लेप्चा व्यंजनों का स्वाद लें
जब तक आप स्थानीय व्यंजनों का स्वाद नहीं लेते हैं, तब तक एक जगह की यात्रा पूरी नहीं होती है। यांगांग में स्वादिष्ट लेप्चा व्यंजनों को चखें। अगर आप एक होमस्टे में रह रहे हैं, तो आप शायद खाने में ये व्यंजन ही मिल जाएँगे। और शाम को, एक गिलास छी या छांग का गिलास पिएँ जो यहाँ कि स्थानिय शराब है।


यांगांग घूमने का सबसे अच्छा समय
आप साल के किसी भी समय यांगांग जा सकते हैं। सर्दियाँ बहुत कड़ाके की नहीं होती और गर्मियों में भी मौसम सुहाना रहता है। यहाँ पूरे साल बर्ड वॉचिंग का आनंद लिया जा सकता है।


कैसे पहुँचें यांगांग?

निकटतम हवाई अड्डा गंगटोक के पास पाक्योंग में है। लेकिन पाक्योंग के लिए उड़ानें संख्या में काफी कम हैं। बागडोगरा में प्रमुख हवाई अड्डा है जो सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

निकटतम रेलवे प्रमुख न्यू जलपाईगुड़ी में है।न्यू जलपाईगुड़ी से, यांगांग सड़क द्वारा लगभग 118 कि.मी. दूर है। गंगटोक से यह 53 कि.मी.। आप या तो गंगटोक या सिलीगुड़ी से यांगांग तक एक गाड़ी किराए पर ले सकते हैं। गंगटोक से यांगांग के लिए शेयरिंग जीप भी मिलती है लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है।

तो आप कब जा रहे हैं सिक्किम के इस छुपे खज़ाने को ढूंढने?




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जूनागढ़: कई बेशकीमती नगीने लिए बैठा है लेकिन एक नगीना ऐसा है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है!

जूनागढ़: कई बेशकीमती नगीने लिए बैठा है लेकिन एक नगीना ऐसा है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता

हर शहर की अपनी कहानी होती है। शहर की उस कहानी को जानने के लिए शहर को घूमना पड़ेगा, पैदल नापना पड़ेगा और समझना पड़ेगा। वैसे तो गुजरात की धरती अपनी गोद में कई बेशकीमती नगीने लिए बैठा है लेकिन एक नगीना ऐसा है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है, जूनागढ़। जूनागढ़ आजादी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पन्ना है लेकिन घुमक्कड़ों की नजर में ये अभी तक आया नहीं है। जूनागढ़, अपनी नवाबी से प्रकृति की छंटा तक के लिए जाना जाता है। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और इतिहास को करीब से देखने की चाहते रखते हैं। उससे भी बड़ी बात आपके अंदर घुमक्कड़ी का कीड़ा है तो इस शहर को देख लेना चाहिए। क्योंकि जूनागढ़ को देखे बिना गुजरात घूमना अधूरा ही है।

कभी भारत की एक रियासत रहा जूनागढ़ गुजरात में सबसे ऊंची जगह पर बसा है। जूनागढ़ में आठ सौ ज्यादा हिन्दू और जैन मंदिर हैं। जूनागढ़ का अर्थ है पुराना किला। गिरनार पहाड़ी पर बसे इस शहर का नाम जूनागढ़ के किले के नाम पर है। जूनागढ़ को चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक से लेकर भारत के विभाजन के समय तक याद किया जाता है। इसके बाद जूनागढ़ भारत का हिस्सा हो गया।


इन जगहों पर जाएं


जूनागढ़ गुजरात की राजधानी गांधीनगर से 341 किमी. दूर है। जूनागढ़ की वास्तुकला बहुत पुरानी है, जो देखने लायक है। ये शहर घुमक्कड़ों के लिए परफेक्ट जगह है लेकिन इसको अभी ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है। इस शहर को अभी ज्यादा एक्सप्लोर नहीं किया है। यहां गुफाएं, मंदिर और खूबसूरत किले हैं। अगर आपने अब तक इस शहर को नहीं देखा है तो पहली फुर्सत में इसे देखना चाहिए। अगर आप इस शहर में जाएं तो इन जगहों पर जरूर जाएं।


1- गिरनार हिल्स

जूनागढ़ को घूमने की शुरूआत गिरनार की पहाड़ियों से कर सकते हैं क्योंकि ये जूनागढ़ से बहुत दूर नहीं है। गिरनार हिल्स जूनागढ़ शहर से 5 किमी. की दूरी पर है। गिरनार हिल्स पांच पहाड़ियों का एक समूह है। इनके बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति वेदों से हुई है। इन पांच चोटियों में से एक गोरखनाथ राज्य की सबसे ऊंची चोटी है। जहां से प्रकृति के शानदार नजारे देखने को मिलते हैं। यहां आप ट्रेकिंग भी कर सकते हैं। इसके अलावा इन पहाड़ियों पर बहुत पुराने हिन्दू और जैन मंदिर हैं। नंवबर-दिसंबर में कार्तिक पूर्णिमा पर यहां एक मेला लगता है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।



2- गिर नेशनल पार्क

जूनागढ़ में एक फेमस नेशनल पार्क है, गिर नेशनल पार्क। जहां पूरे देश के सबसे ज्यादा शेर वहीं पाए जाते हैं। अगर आपको जूनागढ़ में एडवेंचर करना चाहते हैं तो गिर नेशनल पार्क की सैर जरूर कीजिए। 1,412 वर्ग किमी. में फैला गिर नेशनल पार्क जूनागढ़ से 65 किमी. की दूरी पर है। 1965 में स्थापित इस अभ्यारण्य में शेर के अलावा चीता, नीलगाय, जंगली बिल्ली, खरगोश, लकड़बग्घा और कोबरा दिखाई पड़ते हैं।


3- अपरकोट किला

अगर आप जूनागढ़ में शांत और सुकून वाली जगह पर जाना चाहते हैं तो आपको अपर अपरकोट किले को देखना चाहिए। शहर के बीचों-बीच स्थित ये किला लगभग 2,300 साल पुराना है। इसे किले को 319 ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त र्मार्य ने बनाया था। किले के चारों तरफ 20 मीटर की ऊंची-ऊंची दीवारें हैं। इसे किले में आप बौद्ध गुफाएं, बावड़ी, मकबरा और मस्जिद देख सकते हैं। किले के चारों तरफ पहाड़ी और हरियाली है, जो इस जगह पर चार चांद लगाती है।


4- दत्त हिल्स

पर्वत शिखर के टाॅप पर स्थित गुजरात का एक पवित्र स्थल है। इस जगह की खासियत ये है कि इसकी पूजा हिन्दू-मुसलमान दोनों करते हैं। मंदिर से पूरे शहर का शानदार नजारा दिखता है। ये नजारा वैसा ही होता है जैसा नाहरगढ़ किले से जयपुर दिखाई देता है। अगर आप भी उस नजारे के गवाह बनना चाहते हैं तो दत्त हिल्स पर जरूर जाएं।



5- महाबत मकबरा

इस मकबरे को नवाबों ने 19वीं सदी के अंत में बनाया गया था। इस मकबरे में बहादुद्दीन की समाधि है। इस मकबरे की अनूठी वास्तुकला और नक्काशी देखने लायक है। मकबरे की खिड़कियों पर पत्थर की नक्काशी, चांदी से सजे पोर्टल्स और घुमावदार सीढ़ियां बेहद खूबसूरत हैं। अगर आप जूनागढ़ जाएं तो इंडो-इस्लामिक शैली में बने इस मकबरे को जरूर देखें।


मंदिरों का गढ़

1- भवनाथ मंदिर

जूनागढ़ में बहुत सारे मंदिर है, शायद इसलिए इसे मंदिरों का गढ़ भी कहा जाता है। गिरनार पहाड़ी की तलहटी में स्थित ये शिव मंदिर गुजरात का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। महाशिवरात्रि को यहां कुंभ मेले जैसा माहौल होता है। उस दिन देश के कोने-कोने से नागा साधु बाबा आते हैं और मंदिर में पूजा करते हैं।


2- कालिका मंदिर

भवनाथ मंदिर के अलावा यहां कालिका मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है। इसे अघोरियों का मंदिर कहा जाता है। साधु अपने शरीर पर भस्म लगाए हुए रहते हैं। उनको देखकर लगता है कि ये शिव की टोली है। शिवजी के भक्त इस मंदिर में जरूर आते हैं। इसके अलावा यहां दत्तात्रेय मंदिर है जो गिरनार के सबसे ऊंचे पर्वत पर स्थित है।


3- अड़ी-कड़ी वाव

राजस्थान के अलावा गुजरात भी गहरे कुओं और बावलियों के लिए जाना जाता है। जूनागढ़ में अड़ी-कड़ी नाम का एक कुआ है। जिसके बारे में एक कहानी यहां प्रचलित है। कहा जाता है कि जब इस कुएं की खुदाई चल रही थी। कई महीनों के बाद भी जब पानी नहीं निकला तब एक ज्योतिषी की सलाह पर दोनों बहनों ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। उसके बाद कुआ पानी से भर गया और कभी सूखा नहीं। इस कुएं को यहां के लोग बहुत पवित्र मानते हैं।

कैसे पहुंचे?

जूनागढ़ वैसे तो बहुत खूबसूरत और घुमक्कड़ी के लिए मुफीद जगह है लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यहां आप सड़क मार्ग, ट्रेन और फ्लाइट से पहुंच सकते हो। गुजरात की राजधानी गांधीनगर से जूनागढ़ की दूरी 341 किमी. है। अगर आप यहां फ्लाइट से जाने की सोच रहे हैं तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा राजकोट एयरपोर्ट है। राजकोट से जूनागढ़ की दूरी 102 किमी. है। आप वहां से टैक्सी बुक करके आ सकते हैं या बस से भी आ सकते हैं। जूनागढ़ सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप अपनी गाड़ी से या बस से यहां पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप जूनागढ़ रेल मार्ग से भी कनेक्टड है। जूनागढ़ जंक्शन शहर से 1 किमी. की दूरी पर है।

इस बड़े शहर में ठहरने की कोई दिक्क्त ही नहीं है। यहां आपको छोटे-बड़े, महंगे-सस्ते हर प्रकार के होटल आपको मिल जाएंगे। अगर आप हाॅस्टल में ठहरना चाहते हैं तो जूनागढ़ में वो भी उपलब्ध हैं। इस शहर को अब तक घुमक्कडों ने अपनी नजर से दूर रखा है। आप इस शहर में जाएंगे तो आपको पता चलेगा कि ये कितना खूबसूरत है।




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कुदरत के खूबसूरत नजारें पहाड़, समुद्र और रेगिस्तान: इन 5 जगहों पर एक साथ मिलते हैं ये नज़ारे!

कुदरत के खूबसूरत नजारें पहाड़, समुद्र और रेगिस्तान: इन 5 जगहों पर एक साथ मिलते हैं ये नज़ारे!


गुजरात के बारे में जब हम सोचते हैं तो दिमाग में ये बातें नहीं आती कि यहाँ ट्रेकिंग हो सकती है। लेकिन असल में निडर यात्री और ट्रेकिंग के शौक़ीन लोगों के लिए यहाँ कई बेहतरीन जगहें मौजूद हैं। आप यहाँ समुद्रों से खेलते हुए सितारों की सैर कर सकते हैं तो वहीं पहाड़ पर जाकर किसी ऋषि-मुनि की तरह टहल सकते हैं। यहाँ ऐसी कई जगहें हैं जहाँ प्रकृति ने भरपूर प्यार लुटाया है। जानकर हैरानी हो सकती है कि गुजरात में एक ऐसी जगह है जहाँ समुद्र, रेगिस्तान और पहाड़ आपस में बातें करते हैं। इतना ही नहीं, गुजरात की सबसे ऊँची चोटी नागा बाबाओं, अघोरियों और 800 साल पुराने जैन और हिंदू मंदिरों से भरी हुई है।



1. मांडवी बीच ट्रेक

हाँ, ट्रेक हमेशा पहाड़ों पर चढ़ने या जंगलों की खोज करने को नहीं कहते। मांडवी ट्रेक आपको समुद्र के साथ ऑल नाईट डेट पर जाने का मौका देता है। मोधवा से रावलशा पीर और काशी विश्वनाथ तक के समुद्र तट को देखने में तीन से चार घंटे का समय लगता है और सूर्यास्त से एक घंटा पहले शुरू करना सबसे अच्छा होता है। पूर्णिमा की रात के आसपास, ट्रेक रात में भी किया जा सकता है, जब आप समुद्र तट पर समुद्री जीवों को टहलते देख सकते हैं। और हाँ, चाँदनी रात की खूबसूरती को निहारने के साथ ही आप रौशनी में लहरों को नाचते देख सकते हैं। आप समुद्र तट पर कैंप लगा सकते हैं या काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर ठहरने की जगह पा सकते हैं।

बेस कैम्प: मोधवा
बेहतरीन समय: सालभर


2. कालो डूंगर ट्रेक
कालो डूंगर (1,515 मी) या काला पहाड़ी गुजरात की सबसे ऊँची चोटी है। ड्रोबना से कालो डूंगर तक की यात्रा आपको अनोखे रॉक फॉर्मेशन और पत्थरों वाले सूखे जंगलों में ले जाएगी। एक बार जब आप चोटी पर पहुँच जाते हैं, तो 400 साल पुराना दत्तात्रेय मंदिर देखने को मिलता है। यहाँ शानदार सूर्यास्त के मनोरम दृश्य ज़रूर देखें।

कालो डूंगर वहाँ है, जहाँ समुद्र, रेगिस्तान और पहाड़ मिलते हैं। दोपहर और शाम की आरती के बाद, पुजारी एक ऊँची जगह पर प्रसाद लगाते हैं, जहाँ हर दिन गीदड़ों का एक दल आता है। हैरानी की बात ये है कि वहाँ रेत पर गीदड़ के पैरों के कोई निशान नहीं बनते।


बेस कैम्प: ड्रोबाना
बेहतरीन समय: जुलाई से फरवरी


3. माउंट धिनोधर मंदिर
कहानियों के अनुसार जब ऋषि दत्तात्रेय ने पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया था, तो ऋषि की शक्तियों से पहाड़ हिलने लगा था। तभी ऋषि ने कहा, "धिनो धर", जिसका मतलब 'शांत हो' होता है।

चढ़ाई करते हुए आपको कैक्टि के जंगल, झाड़ियों और अन्य शुष्क वनस्पतियों के बीच से गुजरना पड़ता है। यहाँ आप अपने लक को आज़मा सकते हैं। बताया जाता है कि अगर आप काफी भाग्यशाली हैं, तो आप कुछ तेंदुओं को देख सकते हैं। इन पहाड़ियों पर सर्दियों के मौसम में प्रवासी पक्षियों का आना होता है जो पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण होता है।

बेस कैम्प: थान जागीर
बेहतरीन समय: जुलाई से फरवरी


4. पोलो फ़ॉरेस्ट मार्ग 
पोलो का जंगल गुजरात में एक अलग ही दुनिया लगती है। हरी-भरी पहाड़ियाँ, झरने, झीलें, जहाँ मछुआरे पुराने तरीकों से मछली पकड़ते हैं, और लकड़ी के घरों की चिमनियों से धुआँ निकलता है। पोलो फ़ॉरेस्ट हिमालय या किसी घाटी में बसा प्रतीत होता है।

पहाड़ियों और जंगलों वाला ये भू-भाग ट्रेकिंग के भरपूर अवसर प्रदान करते हैं। कोई स्पष्ट रूप से चिह्नित रास्ता नहीं हैं, लेकिन आप स्थानीय लोगों से पूछ सकते हैं और वे आपको सही दिशा दिखाते रहेंगे। पोलो फॉरेस्ट में कई प्राइम कैंपिंग स्पॉट हैं।

बेस कैम्प: बंधन
बेहतरीन समय: मानसून (जून से अगस्त), जब ये बेहद हरा-भरा रहता है.


5. माउंट गिरनार ट्रेक
गिरनार पर्वत गुजरात की सबसे ऊँची चोटियों में शुमार है, जिसकी ऊँचाई 1,031 मी है। शिखर पर जाते हुए आप 800 साल पुराने हिंदू और जैन मंदिरों से होकर गुजरते हैं। ट्रेक जैसे प्रकृति से जुड़ने का जरिया बनता है वैसे ही ये एक सांस्कृतिक पक्षों से भी अवगत कराता है। आपको नागा बाबा (नग्न ऋषि) और अघोड़ी तपस्वी देखने को मिलेंगे जो शमशान के राख शरीर पर मलते हैं। चोटी से मनोरम दृश्य देखकर आप पुलकित हो उठते हैं।


बेस कैम्प: गिरनार तालेटी
बेहतरीन समय: जुलाई से फरवरी


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होटल या होमस्टे से बोर हो गए तो, ट्रीहाउस पर रहकर देखो, ओर कुदरत के शानदार नज़ारो का आनंद उठाए !

होटल या होमस्टे से बोर हो गए तो, ट्रीहाउस पर रहकर देखो, ओर कुदरत के शानदार नज़ारो का आनंद उठाए !


अगर आप अक्सर यात्रा करते हैं तो इस दौरान शानदार होटल, आरामदायक होमस्टे या आकर्षक हॉस्टलों में ठहरते होंगे। लेकिन अगर आपकी यात्रा के दौरान आपको कोई ऐसी जगह मिले जो बिल्कुल हटकर हो तो वो क्या होगी? इसका जवाब है ट्रीहाउस। यकीन मानिए, यहाँ आपको शानदार प्राकृतिक अनुभव मिलेंगे। यहाँ जाकर आप अपनी बाकी दुनिया को भूलकर चारों तरफ फैले हरे रंग की मनमोहक दुनिया के साथ जुड़ जाएँगे।

सौभाग्य से कुछ भारतीय शहरों में बहुत ही आरामदायक ट्रीहाउस मौजूद हैं जो अब युवा यात्रियों के बीच काफी पसंद भी किए जा रहे हैं। अगर आपको भी पेड़ों के ऊपर लकड़ी के आलिशान कमरों में रहने का आइडिया पसंद हो तो आप भारत के इन बेस्ट ट्रीहाउस की लिस्ट आपके बहुत काम आएगी।


1. जंगलबुक मलबरी ट्री हाउस कुल्लूh
हिमाचल में आपकी तीर्थन घाटी की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाएगी, जब तक आप इस शानदार जंगलबुक मलबरी ट्री हाउस में कम से कम 1 या 2 रात नहीं बिताते हैं। आरामदायक ट्रीहाउस की खिड़की से आपको प्रकृति के मनोरम दृश्यों का आनंद मिलेगा। यही नहीं, इसके अंदर आपको होटल जैसी तमाम सुविधाएँ मिलेंगी।


प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹1600-1800



2. वाइथिरी रिज़ॉर्ट वायनाड

अगर आपको वायनाड की ऐतिहासिक संरचनाओं के साथ ढेरों वन्य जीवों को देखना है तो वाइथिरी रिज़ॉर्ट की तुलना में इससे बेस्ट और कोई जगह नहीं है। कल्पना कीजिए जब आप हरे-भरे वातावरण से घिरे इस ट्री हाउस में रहेंगे तो आप कितनी ताज़गी और आरामद महसूस करेंगे।


प्रति व्यक्ति प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹8500



3. ट्री हाउस रिज़ॉर्ट जयपुर
प्रकृति के पास रहना है लेकिन लग्ज़री भी चाहिए? आपकी ये डिमांड पूरी करता है ट्री हाउस रिज़ॉर्ट जयपुर जहाँ आपको ज़रूर ठहरना चाहिए। ये जगह राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब 2 कि.मी. की दूरी पर सयारी घाटी में स्थित है। प्रकृति के आकर्षण के साथ इसकी शानदार लग्ज़री ट्री हाउस के कॉन्सेप्ट को एक अलग ही लेवल तक ले जाता है।


प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹13,500 - ₹21,000


4. हॉर्नबिल रिवर रिज़ॉर्ट कर्नाटक 
हॉर्नबिल रिवर रिज़ॉर्ट काली नदी के पास जंगल के बीच स्थित है। यह खूबसूरत ट्री हाउस रिज़ॉर्ट उन लोगों के लिए एकदम परफेक्ट है जिन्हें कुदरत के नज़ारों को देखना और एडवेंचर स्पोर्ट्स पसंद हैं। यहाँ आप बोटिंंग बर्ड वॉचिंग, नेचर वॉक, फिशिंग व स्टारगेजिंग प्वाइंट के आलावा बहुत सारी एक्टिविटीज़ कर सकते हैं।

प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹14,000 रुपये।


5. नेचर ज़ोन रिज़ॉर्ट, मुन्नार

मुन्नार के नेचर ज़ोन रिज़ॉर्ट की सुबह बेहद सुहानी होती है। यहाँ सूरज की किरणों व पक्षियों के चहकने के साथ ही दिन की शुरूआत होती है। जंगल के ठीक बीच में पेड़ों पर बने इस ट्री हाउस में अटैच्ड टॉयलेट और बालकनी के साथ ही शानदार कमरे हैं जहाँ से आपको जंगल के शानदार नज़ारे दिखेंगे।


प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹12,600


6.द मचान, लोनावला
लोनावाला स्थित मचान ट्री हाउस जंगल से 40-45 फीट ऊपर अनोखा ट्री हाउस है। यहाँ से आपको विशाल जंगल के साथ प्रकृति की गोद में बैठने का सुखद अनुभव मिलेगा। अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर आप मचान में हैं तो आपको लग्ज़री से समझौता नहीं करना होगा।

प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹17,500- ₹50,000


7. ट्री हाउस हाइडवे, बांधवगढ़ नेशनल पार्क 
ट्री हाउस रिज़ॉर्ट घने बांधवगढ़ नेशनल पार्क के बीच स्थित है। यह रिजॉर्ट मुख्य रूप से पारंपरिक स्थानीय जीवनशैली और लकड़ी के खूबसूरत काम के साथ मेहमानों का स्वागत करने के लिए जाना जाता है।

यहाँ की खूबसूरती आपको हैरान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। इस रिजॉर्ट में पांच एयर कंडिशन वाले कमरे हैं और इन कमरों के साथ बाथरूम भी अटैच है जिसमें गर्म व ठंडे पानी की सुविधा 24 घंटे रहती है। इस आरामदायक जगह में एक मिनी बार और बालकनी भी है जहाँ से आपको जंगली जानवर भी दिखेंगे, जो पास के वाटरहोल पर जाते हैं।

प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹14000



8. द हिडन बरो, जीभी

हिडन बरो पहाड़ी पर जिभी नामक एक अनोखे गाँव में स्थित है। इस जगह के बारे में शब्दों में बयां करना मुश्किल है। इस ट्री हाउस के कमरे हीटर, चाय व कॉफी के लिए इलेक्ट्रिक कैटल, संगीत प्रेमियों के लिए रेडियो के अलावा तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। इसके कमरे से दिखने वाला नज़ाा सीधे आपकी आँखों से आपके दिल में उतर जाएगा।

प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹5000



9. रेनफॉरेस्ट, अथिरापल्ली फॉल्स
रेनफॉरेस्ट ट्रीहाउस अथिरापल्ली में अथिरापल्ली फॉल्स के बिल्कुल निकट घने जंगलों में स्थित है। यहाँ की मनमोहक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। इस ट्रीहाउस के कमरे किंग- साइज़ बेड और सुंदर फर्नीचर से सजे हुए हैं।बालकनी से शानदार झरने के मनोरम दृश्य नजर आते हैं। आप चाहें तो अपनी अगली छुट्टी में अपने पसंदीदा समुद्र तट रिजार्ट को छोड़ कर इस अद्भुत ट्रीहाउस की ओर अपना रुख कर सकते हैं।

प्रति व्यक्ति, प्रति रात अनुमानित खर्च: ₹16,000 - ₹20,000






हम तो अपनी छुट्टी की योजना पहले से ही बना रहे हैं। क्या आप कभी किसी ट्रीहाउस में रहे हैं? हमें कमेन्ट कर ज]रूर बताएँ!



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