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Monday, 27 July 2020

भारत के 12 गाँव ,जहाँ सही मायने में भारत की रूह बसती है , भीड़-भाड़ भरे शहरों से दूर एक दुनिया,

भारत के 12 गाँव ,जहाँ सही मायने में भारत की रूह बसती है , भीड़-भाड़ भरे शहरों से दूर एक दुनिया, 
 चकाचौंध भरी सड़कें, मयखानों में लड़खड़ाते लोग, नशा और हवस; शहरों की यही दास्तान हैं | मगर भीड़-भाड़ भरे शहरों और दफ़्तरों के मायूस कमरों से दूर भी एक दुनिया है, जहाँ कवियों को प्रेम रस से भरी कविताएँ गढ़ने की प्रेरणा मिलती है | हम बात कर रहे हैं भारत के गाँवों की, जहाँ सही मायने में भारत की रूह बसती है | सुनने में थोड़ा पिछड़ा लग सकता है, मगर गाँव की खुली हवा और हरियाली में एक अलग ही सुकून है |

तो भारत की इसी रूह से रूबरू होने के लिए इन बेहद खूबसूरत गाँवों के बारे में जानिए और निकल जाइए शहर के जंजाल से दूर ऐसी जगहों पर जहाँ ज़िंदगी काटी नहीं, जी जाती है |


मलाना गाँव
हिमाचल प्रदेश के मलाना में मस्ती

मलाना भारत का सबसे दिलचस्प गाँव माना जाता है | हिमालय की कुल्लू वैली में बसे इस गाँव को दुनिया के सबसे पहले लोकतंत्रों में से एक माना जाता है | यहाँ की खूबसूरती इतनी पाक और हवा इतनी साफ है कि साँस लेने से ही नशा सा चढ़ जाएगा |

पनामिक गाँव
लद्दाख का पनामिक, जिसे भारत का एकमात्र गर्म पानी के सोते वाला गाँव होने का दर्जा प्राप्त है


लेह से 150 कि.मी. दूर पनामिक गाँव है जहाँ खारडुंग ला पास से होकर पहुँचा जा सकता है | लेह से होते हुए आप खूबसूरत नुब्रा वैली तक भी जा सकते हैं | ये गाँव आस-पास के बर्फ़ीले पहाड़ों के बीच बने गर्म पानी के सोते की वजह से मशहूर है जहाँ दुनिया भर से सैलानी गोता लगाने आते हैं | ये भारत का अनोखा गाँव है और इस गाँव के बाद सियाचीन का ग्लेशियर आता है |


किब्बर गाँव
हिमाचल की स्पिति वैली में स्थित दुनिया के सबसे ऊँचे गाँव किब्बर में आपका स्वागत है

14000 फीट की ऊँचाई पर स्थित किब्बर गाँव में कुदरत की सुंदरता देख कर लोग दंग रह जाते हैं | आस-पास के नज़ारों में या तो भूरी ज़मीन दिखती है या सफेद बर्फ से ढके पहाड़ | इस गाँव से होकर आप दुनिया के सबसे बड़े और ऊँचाई पर स्थित मठ 'की मठ' में पहुँच जाते हैं | इस मठ की बनावट इतनी अनोखी है कि आप ज़िंदगी भर नहीं भूल पाएँगे |

पूवर गाँव
केरल का पूवर समुद्रतट के पास छुट्टी मनाने के लिए सही जगह है

त्रिवेंद्रम के दक्षिणी छोर पर बसा पूवर वो तटवर्ती गाँव है जहाँ से बेहतर समंदर के पास रहने का अनुभव और कहीं नहीं | गाँव होते हुए भी समुद्रतट के किनारे छुट्टी मनाने के लिहाज से यहाँ खूबसूरत तट हैं | केरल में बैकपैकिंग करते मुसाफिर इस गाँव में ज़रूर जाएँ |

चितकुल गाँव
हिमाचल की किनौर वैली में बसा चितकुल वो गाँव है जहाँ भारतीय सड़क समाप्त हो जाती है

भारत-चीन सीमा के बिल्कुल पास बसा ये गाँव भारत का ऐसा आख़िरी गाँव है जहाँ आप बिना परमिट के जा सकते हैं | हिमालय की गोद में स्थित अन्य गावों की तरह ही इस गाँव में भी घरों की छतें लकड़ी की बनी हैं, जो पुरानी वास्तुकला की याद दिलाती है | कुदरत की खूबसूरती को करीब से देखने के लिए इस गाँव में ज़रूर घूमें |

ज़ुलुक गाँव
सिक्किम का ज़ुलुक गाँव, जहाँ एक भी होटल नहीं है

भारत में इतने सुंदर गाँव हैं कि आप घूमते-घूमते थक जाएँगे | सिल्क रूट पर स्थित ज़ुलुक भी ऐसे गाँवों में से एक है | इस गाँव में कोई होटल नहीं है, इसलिए यहाँ आने वाले सैलानियों को यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ ठहरना होगा | गाँव तक पहुँचने वाला रास्ता भी कोई कम रोमांचक नहीं है | यहाँ पहुँचने के लिए 32 ख़तरनाक मोडों से होकर गुज़रना पड़ता है |

प्रागपुर गाँव
हिमाचल की कांगड़ा वैली में स्थित प्रागपुर भारत का पहला ऐतिहासिक गाँव है

पत्थरों से बने रास्ते के आस-पास वास्तुकला के नायाब नमूने बने हैं | हिमालय की गोद में बसा ये साफ-सुथरा गाँव मैक्लॉडगंज, पालमपुर और ऐसे अन्य कई टूरिस्ट स्पॉट्स के रास्ते में आता है | हिमाचल प्रदेश में बैकपैकिंग करते हुए इस गाँव में घूमना ना भूलें |


दोंग गाँव 
अरुणाचल प्रदेश के दोंग गाँव में असली संस्कृति से रूबरू हों

भारत के पूर्वी छोर पर स्थित दोंग गाँव तीन देशों की सीमाओं के पास है | इस गाँव के नज़ारे फोटोग्राफी के शौकीन लोगों को बेहद पसंद आएँगे | इस गाँव के अनोखी बात ये है कि यहाँ सिर्फ़ 3 झोपडियाँ हैं क्योंकि यहाँ के लोग साधारण रूप से मगर ज़िंदादिली के साथ जीने में विश्वास रखते हैं |

कलाप गाँव
उत्तराखंड के कलाप गाँव में सारी थकान उतार दीजिए

भीड़-भाड़ वाले राज्य में भी ऐसी जगहें होती हैं जहाँ सुकून मिलता है | गढ़वाल की पहाड़ियों में स्थित कलाप गाँव में शहरी धूल-धूआँ नहीं, खुली हवा है | घाटियों में शांति की गूँज आपको अगले दिन अपने दफ़्तर में बहुत याद आएगी |

मावलिनोंग गाँव
मेघालय की पूर्वी ख़ासी हिल्स में स्थित भारत के सबसे साफ गाँव मावलिनोंग की सैर

पहाड़ों की ओर जाते समय भारत के सबसे साफ गाँव में रहने का मौका मिले तो क्या बात है | शिलॉंग से 90 कि.मी. दूर स्थित मावलिनोंग यहाँ की असीमित हरियाली और गाँव के प्रबंधन के कारण जाना जाता है | गाँव के स्थानीय लोगों के साथ घुलिए मिलिए, गाँव की सैर कीजिए और जीवित पेड़ों की जड़ों से बने पुल को देखिए |

लमयूरू गाँव 
लद्दाख के लमयूरू गाँव में फोटोग्राफी का मज़ा

इस गाँव में आपको दूर-दूर तक बर्फ़ीले पहाड़ या भूरी बंजर ज़मीन ही दिखाई देगी | यहाँ के सबसे बड़े और पुराने मठ के आस-पास ही छोटे छोटे घर बने हैं | यहाँ के स्थानीय लोग कहते हैं कि यहाँ की ज़मीन चाँद की सतह जैसी लगती है, जिसका पता आपको इस गाँव में घूमकर लग जाएगा | अपना कैमेरा साथ ले जाना मत भूलिएगा |

मुत्तम गाँव
तमिलनाडु के मुत्तम में मछली पकड़ने का मज़ा

साफ समुद्रतट, पथरीली चोटियों और गुफ़ाओं वाले मुत्तम में आकर आप बाहरी दुनिया को भूल जाएँगे | इतना खूबसूरत गाँव होने के बाद भी यहाँ के समुद्रतटों पर आपको भीड़ नहीं दिखाई देगी | शाम को तट या लाइटहाउस से आराम से समंदर में ढलते सूरज का नज़ारा देखिए |



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' कसार देवी उत्तराखंड , कसार में वो सब कुछ है जो बैगपैकर्स के लिए इसे एक परफेक्ट डेस्टिनेशन बनाती है

' कसार देवी उत्तराखंड , कसार में वो सब कुछ है जो बैगपैकर्स के लिए इसे एक परफेक्ट डेस्टिनेशन बनाती है

कई पॉपुलर हिल स्टेशन घूम चूका हूँ। इसलिए इस बार तय किया एक ऐसी जगह जाने का जो पॉपुलर न हो। सर्च करने पर कई ऑप्शन आ रहे थे जो मुझे और कन्फ्यूज कर रहे थे। फिर एक जगह पर नज़र ठहर गई और वो जगह थी कसार देवी। थोडा गूगल किया तो पता चला ये जगह तो ऐतिहासिक है। फिर मैंने ट्रेवल प्लान बनाया और निकल पड़ा।


कसार देवी उत्तराखंड के कुमाऊं रीजन में अल्मोड़ा के करीब एक क़स्बा है। मेरे साथ मेरी बीवी भी थी। हमारी शादी को 3 साल हो चुके थे. बैचलर लाइफ में मैंने खूब ऑफबीट डेस्टिनेशन को कवर किया था। लेकिन बीवी के साथ तीन सालों में अक्सर पॉपुलर डेस्टिनेश पर ही गया था। इसलिए इस बार थोडा डर था कि पता नहीं कैसी जगह है? अच्छे होमस्टे मिलेंगे भी या नहीं? खैर अब जाना था तो जाना था। सोचा जो भी होगा, जैसा भी होगा वहां जा कर देखा जाएगा।

कुछ ऐसे शुरू हुआ सफ़र

दिल्ली से रात 12 बजे हमारा सफ़र शुरू हुआ। आनंद विहार से हमने बस ली सुबह 9 बजे तक काठगोदाम पहुंचे। वैसे आप चाहे तो दिल्ली से ट्रेन भी ले सकते हैं। काठगोदाम के लिए कई ट्रेनें हैं. काठगोदाम पहुँच कर हमने अल्मोड़ा के लिए टैक्सी लिया। यूँ तो काठगोदाम से शेयर टैक्सी भी मिलते हैं लेकिन अगर आप फोटोग्राफी के शौक़ीन हैं तो प्राइवेट टैक्सी कर लें क्योंकि काठगोदाम से अल्मोड़ा के रस्ते में आपको कई ऐसे लोकेशन मिलेंगे कि आप फोटोज क्लिक करने से खुद को रोक नहीं पायेंगे। शेयर टैक्सी आपको 300 रुपये में मिल जायेंगे और प्राइवेट टैक्सी 1200 तक में। साढ़े तीन घंटे में हम अल्मोड़ा पहुँच गए।

सफ़र काफी लंबा था इसलिए हम बिलकुल थक गए थे। बस अब जल्द से जल्द कसार पहुँच कर अपने रूम में आराम करना चाहते थे. चूँकि अल्मोड़ा मैं पहले भी आ चुका था, इसलिए अल्मोड़ा में न रुक कर सीधे लोकल टैक्सी लिया कसार देवी के लिए। अल्मोड़ा -बिनसर हाइवे पर अल्मोड़ा से करीब 8 किलोमीटर दूर है कसार देवी गाँव। पहली बार पहाड़ के लोकल टैक्सी में सफ़र किया और अद्भुत अनुभव था। वो दरअसल टैक्सी नही एक जीप थी, जिसमे कई लोकल पहाड़ी लोग बैठे थे। उनकी कुमाउनी भाषा कुछ समझ तो नहीं आ रही थी लेकिन बड़ा ही अच्छा लग रहा था।

कसार देवी

कसार देवी पहुँच कर लगा ये वाकई में उत्तराखंड के मुकुट में छुपा एक नगीना। कसार में वो सब कुछ है जो बैगपैकर्स के लिए इसे एक परफेक्ट डेस्टिनेशन बनाती है- अच्छे लोग, बजट फ्रेंडली, शांत, भीड़ का नामोनिशान नहीं, ना गाड़ियों का शोर, कुछ ट्रेक्स और शानदार लैंडस्केप।

नाम से ऐसा लगता है जैसे ये कोई तीर्थ स्थल हो लेकिन ऐसा है नहीं। कसार एक कस्बा है। उस गाँव में है कसार माता का मंदिर जो दूसरी शताब्दी में बना था और उसी मंदिर के नाम पर इस गाँव का नाम पड़ा कसार देवी। एक बेहद छोटा क़स्बा।

हमने एक हॉस्टल बुक कर रखा था। बरसात का मौसम था। वैसे मैं तो चला गया बरसात में लेकिन आपको सलाह दूंगा की आप बरसात के मौसम में न जाएँ। कसार देवी पहुँचते ही बादलों ने हमारा स्वागत किया। अगस्त में भी मौसम ठंडा हो चला था। हमने जिस हॉस्टल को बुक किया था, उसका नाम था Hot's Hostel. एक छोटा सा हॉस्टल जहाँ से कसार का बेहद खुबसूरत व्यू नज़र आता था।

हमने थोड़ी देर आराम किया। लेकिन मौसम इतना अच्छा था कि ज्यादा देर तक हम कमरे में नहीं रह सके। हम निकल पड़े कसार देवी मंदिर तक ट्रेक करने, जो हमारे हॉस्टल से करीब 2 किलोमीटर दूर था। कसार देवी मंदिर तक ट्रेक करते हुए जाना एक बहुत ही शानदार अनुभव था। कितनी शांति थी यहाँ, यहाँ से लौटने का मन ही नहीं कर रहा था।

कसार देवी मंदिर

कसार देवी माँ दुर्गा के 9 रूपों में से एक माता कात्यायनी को समर्पित है। 1890 में स्वामी विवेकानंद ध्यान के लिए कसार देवी मंदिर में आये थे और कई महीनों तक यहाँ रहे। मंदिर परिसर में लगे एक बोर्ड पर इसकी जानकारी लिखी है। यहाँ कि आध्यात्मिक शांति ने विदेशियों को भी आकर्षित किया। अमेरिकी कवि एलन गिन्सबर्ग, अमेरिकी गायक-गीतकार बॉब डायलन और अंग्रेजी संगीतकार जॉर्ज हैरिसन भी आध्यात्म की खोज में कसार देवी आ चुके हैं। नासा के अनुसार ये पहाड़ वेन एलन नाम की बेल्ट पर स्थित है, जिसकी वजह से यहाँ पर पृथ्वी का चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होता है और असीम ऊर्जा उत्पन्न होती है।


कसार देवी मंदिर

कसार देवी की खाली खाली सड़कें, चीड़ के जंगल, ठंडी ठंडी हवा, पीठ पर बैग टांगे पैदल या फिर साइकिल से कसार नापते विदेशी पर्यटक इस जगह को विशिष्ट बनाते हैं। अगर मौसम साफ़ रहा तो आपको यहाँ से नंदा देवी, पंचाचूली और त्रिशूल पर्वत आराम से दिख जायेंगे। हम नहीं देख सकें क्योंकि हम बरसात के मौसम में गए थे और बादलों ने हमारा पीछा छोड़ा ही नहीं।

कसार में टूरिस्ट रेस्ट हाउस के पास है दीनापानी ग्राउंड। ये मैदान पहाड़ की चोटी पर है और यहाँ पहाड़ी बच्चे आपको फुटबॉल खेलते हुए दिन के किसी भी वक़्त मिल जायेंगे। इस मैदान में बैठकर आप बिनसर की चोटियों को देख सकते हैं। इस मैदान से सूर्योदय और सूर्यास्त का शानदार नजारा देखने को मिलता है।

कसार आने से पहले हमने सोचा था कि छोटा क़स्बा है, एक दिन में घूम कर अगले दिन बिनसर या फिर जागेश्वर के लिए निकल लेंगे। बिनसर यहाँ से महज 16 किलोमीटर है और जागेश्वर करीब 40 किलोमीटर। लेकिन कसार ने हमें ऐसा बाँध लिया और हम 2 दिनों तक वहां रुके। तीसरे दिन हमने जागेश्वर जाने का वक़्त निकाल ही लिया।

जागेश्वर धाम

जागेश्वर जाने के लिए अल्मोड़ा से टैक्सी मिलती है। हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमें इस बार भी एक लोकल जीप मिल गई। उस जीप का ड्राइवर नेपाली था। उसने हमें बहुत ही सस्ते में जागेश्वर तक छोड़ दिया। जागेश्वर धाम भागवान शिव का मंदिर हैं। यहाँ एक ही परिसर में छोटे बड़े करीब 124 मंदिर हैं। प्रत्येक मन्दिर के भिन्न भिन्न नाम हैं। सावन में वहां श्रावणी मेला लगता है और बहुत भीड़ होती है। हम गए तो एक दिन पहले ही मेला ख़त्म हुआ था। इसलिए अभी भी वहां कुछ भीड़ थी।


जागेश्वर मंदिर

जागेश्वर से आप एक दिन में ही लौट सकते हैं। कसार के आसपास और भी कई गाँव है जहाँ आप ट्रेकिंग करते हुए जा सकते हैं और कुमाऊं की संस्कृति को करीब से महसूस कर सकते हैं।

कहाँ ठहरे

कसार देवी में कई छोटे बड़े गेस्ट हाउस हैं। कसार जंगल रिसॉर्ट, इम्पीरियल हाइट्स (लक्जरी कॉटेज), हॉट्स होस्टल (बजट फ्रेंडली), मोक्ष, टूरिस्ट रेस्ट हाउस, डोलमा गेस्टहाउस के अलावा कुछ और रेस्ट हाउस हैं। यहाँ आप होमस्टे भी ले सकते हैं। स्थानीय लोगों के साथ रहना आपके लिए नया अनुभव होगा।

और हाँ यहाँ पहुँच कर कुमाउनी खाना जरूर चखें। हमने जहाँ कुमाउनी खाना खाया था उस छोटे से रेस्टोरेंट का नाम था “द कसार किचेन” और उस खाने का स्वाद अब तक हमारी जुबान पर है।

मेरे लिए इस सफ़र की सबसे बड़ी खासियत ये रही कि मेरी श्रीमती जी को कसार बहुत पसंद आया। लौटते वक़्त तो मैडम का कहना था कि अब हम ऑफ़बीट डेस्टिनेशन पर ही आया करेंगे। यहाँ भीड़ बिलकुल नहीं होती।



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' देहरादून सहस्त्रधारा , छोटे-बड़े चट्टानों को चीरता हुआ जल प्रवाह आँखों के लिए ऐसा था जैसे एक खुबसूरत तस्वीर रखी हो?

' देहरादून सहस्त्रधारा , छोटे-बड़े चट्टानों को चीरता हुआ जल प्रवाह आँखों के लिए ऐसा था जैसे एक खुबसूरत तस्वीर रखी हो? 
अगर लॉकडाउन से पहले आप अपनी ट्रिप की योजनाओं को इस वजह से टाल रहें थे कि आप पैसे नहीं बचा पा रहें थे या आपको ऑफिस से एक या 2 दिन की ही छुट्टी मिलती थी तो देहरादून की ये बजट ट्रिप का प्लान आपके लिए बेस्ट रहेगा।

क्वारंटाइन के दिनों से पहले,  मैं काफी दिनों से सोच रहा था कि ऑफिस से छुट्टी मिले तो कहीं बाहर घूमने जाऊँ पर करियर एक साल पहले ही शुरू करने की वजह से ना तो पैसे बचा पा रहा था ना ही बॉस छुट्टी देने को राज़ी था। ऐसे में मैंने और मेरे तीन दोस्तो ने योजना बनाई कि हफ्ते की अपनी एक छुट्टी का इस्तेमाल करके देहरादून घूमने चलते हैं। बस फिर क्या था, हमने ट्रेन चेक करना शुरू किया। वैसे तो दिल्ली से देहरादून जाने का बेस्ट विकल्प देहरादून जनशताब्दी एक्सप्रेस है जो आपको 5 घंटें में देहरादून पहुँचा देगी और उसका किराया भी कम है पर ट्रेन में सीट ना मिलने की वजह से हमने बस से जाना सही समझा।

दिल्ली से देहरादून बस का सफ़र
हमे दिल्ली ISBT कश्मीरी गेट से बस पकड़नी थी। हमने निर्धारित जगह पहुँचने के बाद हमने खाना खाया और अपनी बस में जाकर बैठ गए। बस थी शुक्रवार रात 10:30 बजे की और ₹1200 में 4 सीट मिल गयी।  हमें दिल्ली से देहरादून के लिए 6 घंटे लगने थे। सुबह जब 5 बजे बस वाले ने हमें जगाया तो हम आई एस बी टी देहरादून पहुँच गये थे। हमने वहाँ के ऑटो वालों से थोड़ी पूछताछ की, ओयो पर हमने पहले ही कमरे चेक किए थे उनका किराया भी ठीक था पर हमें उससे थोड़े सस्ते में ही एक ऑटो वाले ने रूम दिलवा दिया।

सोच समझ कर करें होटल का चयन

ध्यान रहे कि ओयो से रूम लेने पर आपको सुबह और शाम दो दिन का किराया देना पड़ता है क्योंकि ओयो में दोपहर में ही चेक इन की सुविधा है। हम शनिवार सुबह 5 बजे वहाँ पहुँचे थे और हमें उसी रात ही वहाँ निकलना था। हमने होटल वाले से बात की और एक दिन का ही किराया दिया जो हमारे बजट के अन्दर आ गया। हम होटल सुंदर पैलेस में ठहरे थे जहाँ की सुविधाएँ ठीक थी, आस-पास और भी होटल हैं जो आपको उसी किराए पर मिल जाएँगे।

देहरादून 
लोकल बस यात्रा ने संभाला बजट
होटल में कुछ देर सोने के बाद हम 9 बजे तक तैयार हुए। उस समय तक देहरादून की दुकानें खुलनी शुरू हो जाती हैं। हमने आस पास की दुकानों से सहस्त्रधारा जाने तक का रास्ता पूछा। सहस्त्रधारा वहाँ से 1 घंटे की दूरी पर है और आप वहाँ तक की कैब भी कर सकतें हैं। अगर आपको लोकल में सफ़र करने में परेशानी नहीं है तो मेरा सुझाव होगा की अपने पैसे बचाएँ और बस और ऑटो ले लें। कैब में आपको लोकल से 16 गुना ज्यादा खर्च होगा।

घंटा घर
इंदिरा मार्केट के कैफे
हमने अपने होटल के बहार से लोकल ऑटो लिया जिसने हमें करीब 20 मिनट में परेड ग्राउंड उतारा। इसी जगह से हमें सहस्धारा की बस मिलनी थी। इससे पहले हमने नाश्ता करने का फैसला किया। परेड ग्राउंड चौराहे पर एक रास्ता इंदिरा मार्केट की ओर जाता है जिसके आगे देहरादून का प्रसिद्ध घंटा घर है। हम 10 मिनट पैदल चल कर घंटा घर पहुँच गए जहाँ कई कैफ़े थे। घंटा घर सड़क की शुरुआत में ही एक कैफ़े है के बी सी, जिसका अम्बिएंस काफी सुन्दर था, इसलिए हमने वहाँ नाश्ता करने का फैसला किया। यहाँ आपको हर तरह का नाश्ता सस्ते में मिल जायेगा और खाने की क्वालिटी भी अच्छी है। हमने ₹250 में इडली और आलू पराठे की प्लेट मंगवाई थी जो 4 लोगों के लिए काफी था। वहाँ से आधे घंटे में नाश्ता करके हम परेड ग्राउंड की तरफ वापस चले गए।

हमें तुरंत ही सहस्त्रधारा की बस मिल गयी और ₹40 में हमने करीब 1 घंटे की यात्रा की और अपने पहले पड़ाव पर पहुँच गए। बस की यात्रा आधे घंटे के बाद काफी मज़ेदार हो गयी थी। हर तरफ सिर्फ बादल और बादलों के पीछे छिपे पहाड़ दिखाई दे रहे थे।

पहाड़ों से घिरा सहस्त्रधारा
सहस्त्रधारा पहुँचने पर भी नज़ारा कुछ ऐसा ही था, मनमोहक। वहाँ पहुँचते ही आपको कई लोकल ढाबे दिखेंगे और सामने खूबसूरत पहाड़।

हमने पहाड़ की ओर आगे बढ़ना शुरू किया और कुछ देर आगे जाने के बाद हमें एक दुकानदार ने बताया कि सहस्त्रधारा जाने का रास्ता रोपवे से हो कर जाता है। यह सुनकर हम बहुत उत्साहित हो गए। हमने वहाँ से रोपवे की 4 टिकट ली जिसकी कीमत ₹150 प्रति टिकट थी जिसमें आप सहस्त्रधारा के सभी महवपूर्ण आकर्षण का आनंद ले सकते हैं। हम आगे बढ़े और रास्ते में कई पानी के झरने देखे जो मन को बेहद खुश कर देने वाले थे पर हम वहाँ जाना चाहते थे जहां से ये पानी बह कर आ रहा था। हमें दुकानदारों ने रास्ता दिखाया और हम पहुँच गये उस धारा के पास जहां से पानी का बहाव आ रहा था।
छोटे-बड़े चट्टानों को चीरता हुआ जल प्रवाह आँखों और कानों दोनों के लिए ऐसा था जैसे एक खुबसूरत तस्वीर रखी हो और उसमें हम पानी को बहते हुए देख और सुन सकते हैं। वहाँ कुछ देर आराम से बैठ कर हमने उस दृश्य को निहारा, कुछ तस्वीरें ली और रोपवे के लिए आगे बढ़े। आगे कुछ देर चलने के बाद हम रोपवे के लिए अपने डब्बे पर बैठ गए और रोपवे चलने वाले ने मशीन चालू कर दी। हमलोग ऊपर बढ़ने लगे और नीचे का नज़ारा खुबसूरत होता चला गया। रोपवे के उस डिब्बे से आप पूरा सहस्त्रधारा देख सकते हैं और फिर भी आपका मन नहीं भरेगा।
8-10 मिनट की रोपवे यात्रा के बाद हम ऊपर पहुँच चुके थे जहाँ मनुष्य द्वारा बनाए गये कई आकर्षण थे जैसे स्पेस सेंटर, डी जे, बच्चों के लिए टॉय ट्रेन, हमारे लिए शूटिंग, रॉक क्लाइम्बिंग पर हमारे लिए सबसे बेहतरीन आकर्षण था वहाँ के प्राकृतिक नज़ारे। वो जगह इतनी खूबसूरत थी कि हमने वहाँ 100 से ज्यादा तस्वीरें खींची और जितनी ऊपर तक जा सकते थे चढ़ते चले गये।
सहस्त्रधारा में करीब 2-3 घंटे बिताने के बाद हम रोपवे के ही रास्ते से नीचे आ गये। नीचे उतर कर हमने खाना खाने का सोचा पर वहाँ के ढाबों का खाना बेहद महंगा था इसलिए हमने परेड ग्राउंड की बस पकड़ी और वापस घंटा घर वाले के बी सी कैफ़े में जाकर लंच किया।

रॉब्बर्स केव
पानी से भरी गुफा के अन्दर का रोमांच
इसके बाद हमारा अगला पड़ाव था रॉब्बर्स केव या देहरादून की आम भाषा में कहें तो गुच्चुपानी। यहाँ के लिए भी हमें परेड ग्राउंड से बस मिली। वहाँ से गुच्चुपानी के लिए 2 लोगों का किराया ₹24 थे इसलिए हम काफी सस्ते में आधे घंटे के अन्दर रॉब्बर्स केव पहुँच गये। जहाँ बस आपको उतारती है वहाँ से 1 किलोमीटर तक आपको घुमावदार रोड मिलेगी और आपको वहाँ से अन्दर तक पैदल जाना होगा।
 15-20 मिनट चलने के बाद हम गुच्चुपनी के टिकट काउंटर पर पहुँच गये जहाँ से हमने ₹25 प्रति व्यक्ति के हिसाब से टिकट ली। हमनें आगे जाकर एक काउंटर पर अपनी चप्पल जमा की और वहाँ से हवाई चप्पल ली क्यूंकि हमें गुफा के अन्दर बहते पानी में जाना था।
हम आगे गुफा की ओर बढ़े और पानी में उतर गए। पहले तो मुझे थोड़ा डर लग रहा था क्यूंकि कई जगह पर पानी बहुत गहरा था पर गुफा की चट्टानों की मदद से हम आगे बढ़ते गए, गुफा और गहरी होती जा रही थी और पानी मेरी कमर से ऊपर तक आ चुका था।
गुफा के अन्दर जाना थोड़ा मुश्किल है इसलिए अपने साथ सामान ना लेकर जाएँ, और हो सके तो मोबाइल भी जेब में ही रखें। चट्टानों की मदद से और एक दूसरा का सहारा लेकर हम आगे बढ़े और गुफा की अंत में हमें बहुत ही खूबसूरत झरना दिखाई दिया जहाँ से पानी गुफा के अंदर आ रहा था। गुफा के पानी के बहाव से विपरीत जाकर उस झरने तक पहुँचने जितना मुश्किल था उतना रोमांचक भी। वहाँ की कुछ तस्वीरें लेकर हम वापस वहाँ आ गए जहाँ पानी का बहाव कम था।

वो जगह अनोखी थी और मैंने अपने दोस्त के साथ कई तस्वीरें खींची और पानी में खूब मस्ती की। करीब 2 घंटे समय बिताने के बाद और पूरी तरह गीले होने के बाद हम गुफा से बहार आये और जिस रास्ते से आये थे उसी रास्ते लौट गये।

जहाँ बस ने हमें उतारा था वहाँ से हमें लोकल ऑटो मिल गया और हम अपने होटल वापस आ गये। हमें देहरादून के डियर पार्क भी जाना था पर कपड़े गीले होने की वजह से हम होटल वापस आ गये।

वापस आकर हमने थोड़ा आराम किया, फिर बहार जाकर समोसे और मिठाई खायी। कुछ देर वहीं आस पास घूमने के बाद हमें पास के ढाबे में डिनर किया और फिर सामान लेकर बस के लिए निकल पड़े।

देहरादून की आखिरी ट्रीट

वापसी के लिए हमें सुभाष नगर ग्राफ़िक एरा से बस पकड़नी थी जो आई एस बी टी से सीधे रस्ते पर पड़ता है। हमने ऑटो लिया और 20 मिनट में पहुँच गये। जहाँ से बस मिलनी थी वहाँ एक बहुत शानदार पिज़्ज़ा प्लेस नज़र आ रहा था। बस आने में समय था इसलिए हम उस पिज़्ज़ा प्लेस पर गए और वहाँ फ्रूट संडे आर्डर किया। देहरादून की वो हमारी आखिरी ट्रीट थी और वो भी बहुत स्वादिष्ट थी।

देहरादून हम गए एक दिन के लिए थे पर एक दिन में रोपवे पर जाना, पहाड़ पर ऊपर तक जाना, और पानी से भरी गुफा में जाना, ये सब कुछ बहुत मनोरंजक भी था और बजट में भी था। इस पूरी ट्रिप में 4 लोगों का कर्च लगभग ₹11,000 के करीब था जो की एक बजट ट्रिप के लिए बिलकुल परफेक्ट था।


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