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Saturday, 25 July 2020

उतराखंड के पहाड़ों में छुपी हैं कुदरत की एक और फूलों की घाटी! ' चैनाप घाटी ट्रैक ,

उतराखंड के पहाड़ों में छुपी हैं कुदरत की एक और फूलों की घाटी!  ' चैनाप घाटी ट्रैक ,

जब भी हम पहाड़ों पर खूबसूरती की बात करते हैं तो फूलों की घाटी का जिक्र ज़रूर आता है। बहुत लोग इस जगह को अपना ड्रीम डेस्टिनेशन भी कहते हैं, वजह है यहाँ की सुंदरता। पहाड़ों के बीच एक घाटी है जहाँ चारों तरफ कई प्रकार के फूल दिखाई देते हैं। ये वाकई बहुत सुंदर है। लेकिन इस घाटी के अलावा एक और घाटी है जहाँ फूलों की भरमार है। वो घाटी भी फूलों की घाटी की तरह ही फूलों से गुलज़ार रहती है लेकिन इस जगह के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। मुझे भी इस जगह के बारे में नहीं पता था। मैं भी सबकी तरह फूलों की घाटी जा रहा था। जब इस जगह के बारे में पता चला तो पहुँच गया एक और फूलों की घाटी, चेनाप घाटी।
घूमने के लिए वजह नहीं बस सोच होनी चाहिए और मैं तो हमेशा घूमने के बारे में ही सोचता रहता हूँ। एक दिन मुझे मेरे दोस्तो का फोन आया और फूलों की घाटी चलने को कहा। मैं फूलों की घाटी के बारे में सोचकर ही बहुत खुश हो रहा था। लेकिन मुझे क्या पता था कि फूलों की घाटी अभी मेरी घुमक्कड़ लिस्ट से दूर ही रहेगी। हम चारो अपनी कार से अगली सुबह 9 बजे ही दिल्ली से हरिद्वार के लिए निकल गए। अचानक बने प्लान में एक ही कमी होती है, तैयारी। मेरा मोबाइल फुल चार्ज नहीं था और हमे बहुत लंबा रास्ता तय करना था। मैंने मोबाइल कार में चार्ज करने लगा दिया, दिल्ली से जैशीमठ 477 कि.मी  13 से 14 घंटे का रास्ता है! 


हरिद्वार
सफर के बाद सफर

दोपहर 3 बजे हमने हरिद्वार पहुँच कर लंच किया ।
उत्तराखंड आते ही हवा बदल जाती है और ये ठंडी-ठंडी हवा मेरे मन को भी भा रही थी। जल्दी ही हम हरिद्वार और ऋषिकेश को पार करती हुई पहाड़ों के बीच घूमने लगे। पहाड़ों के बीच हर बार एक अलग ही एहसास होता है, मंजिल का एहसास। मंजिल तो अभी बहुत दूर थी, अभी तो सफर शुरू हुआ था। पहाड़ पर कार गोल-गोल घूम रही थी कभी पहाड़ हमारे बगल पर होता तो कभी घाटी। उसी को देखते हुए हम देवप्रयाग पहुँच गए। देवप्रयाग शहर सड़क से बहुत नीचे था लेकिन यहाँ से संगम दिखाई दे रहा था। दो अलग-अलग रंग की नदियाँ अलकनंदा और भागीरथी का संगम हो रहा था। इसी जगह पर दोनों नदियों के मिलने से एक नई नदी बनती है, गंगा।
मैं जब भी देवप्रयाग से गुज़रता हूँ तो एक अफसोस रहता है कि इस शहर को करीब से कब देख पाउँगा। इस बार भी वही अफसोस लेकर आगे बढ़ गया था। जल्दी ही श्रीनगर आ चुका था और उसके बाद रुद्रप्रयाग आता है। ये शहर भी एक पौराणिक स्थल है। यहाँ भी दो नदियों का संगम होता है, अलकनंदा और मंदाकिनी। इसके बाद का सफर तो खूबसूरती से भर जाता है। रास्ते में कई प्रयाग मिलते हैं, कर्ण प्रयाग, नंद प्रयाग और आखिर में पहुँचते हैं चमोली। चमोली उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। आगे का हमारा पूरा सफर चमोली जिले में ही होने वाला था। हम काफी लंबा सफर तय कर चुके थे और शाम भी हो चली थी। फिर भी दिन का आखिरी पड़ाव रह गया था, हम उसी पड़ाव की ओर बढ़ चुके थे। करीब दो घंटे के बाद मैं जोशीमठ आ गया। यहाँ हमे रात भी गुज़ाहरनी थीI

जोशीमठ
फूलों की घाटी या फूल घाटी

हमने रात गुजारने के लिए एक कमरा ले लिया। हम पूरी रात बस यही सोचते रहे कि कहाँ जाए। सुबह-सुबह जब हम नाश्ता कर रहे थे तब हमारी मुलाकात एक घुमक्कड़ से हुई। उसने बताया कि वो चेनाप घाटी जा रहा है, जहाँ पहुँचने में तीन दिन लगते हैं। वो बताकर चला गया और मेरे मन में चेनाप घाटी ही चलने लगी। हम फूलों की घाटी को भूल चुके थे और अब हमारे पास एक नई जगह थी, चेनाप घाटी।
जोशीमठ से चेनाप घाटी की दूरी लगभग 28 कि.मी. है और वहाँ तक जाने के लिए लगभग तीन दिन तक चलना था। हम सभी ने अपने आपको चेनाप के लिए तैयार कर लिया था और उसके लिए आगे भी बढ़ गए। सबसे पहले हमे थैंग गाँव तक जाना था और उसके लिए मारवाड़ी पहुँचना था। मारवाड़ी, जोशीमठ से 10 कि.मी. की दूरी पर है, जहाँ तक हम अपनी कार से आराम से पहुँच गये और कार पार्किंगमे लगा दी थी! अब आगे का रास्ता हमे पैदल ही तय करना था। थैंग गाँव तक पहुँचने का रास्ता बेहद खूबसूरत है और उसी रास्ते पर हम धीरे-धीरे चले जा रहे थे। रास्ते में हम जैसे घुमक्कड़ कम ही लोग थे और यहीं रहने वाले लोग ज्यादा मिल रहे थे। हमने उनसे बार-बार पूछा लेते थे कि हम सही रास्ते पर हैं या नहीं।
हम जब थैंग गाँव पहुँचे तब तक शाम हो चुकी थी। हम सभी के पास खुद का टैंट था, हमने उसको लगाया और आराम करने का इंतज़ाम कर लिया। गाँव में ही एक छोटी-सी दुकान मिली, जहाँ से कुछ सामान लिया और खाना खाया। थैंग गाँव बेहद खूबसूरत गाँव है, पहाड़ों के बीच ये हरा-भरा गाँव देखकर आप ताज़गी से भर जाते हैं। यहाँ की महिलाओं को देखकर यहाँ की संस्कृति का एहसास किया जा सकता है। अगर आप होमस्टे में रूकना चाहते हैं तो वो व्यवस्था भी यहाँ है। हम सभी बहुत थक चुके थे इसलिए लेटते ही नींद आ गई। सुबह उठे तो सामने का नज़ारा देखकर मन खुश हो गया। सामने पहाड़ों पर बादल तैर रहे थे और हरे-भरे पहाड़ सुंदरता का परिचय दे रहे थे।


अगला पड़ाव-खर्क
सुबह जल्दी ही हम खर्क गाँव की ओर निकल गए। इस सफर के लिए हमने काफी पानी साथ में ले लिया क्योंकि हमे गाँव वालों ने बताया था कि रास्ते में पानी नहीं मिलेगा। थैंग गांव से खर्क की दूरी लगभग 6 कि.मी. है। वहाँ तक का रास्ता जंगल से होकर गुजरता है और जंगल में ऐसे कई पेड़ हैं जिनको शायद ही हमने कभी देखा था। खर्क गाँव तक का रास्ता जंगल से होकर ज़रूर गुजरता है लेकिन इतना कठिन नहीं है। हम शाम होने से कुछ घंटे पहले ही यहाँ पहुँच गए। अब हमारे पास दो रास्ते थे या तो रात यहीं गुजारे या शाम होने से पहले चेनाप घाटी पहुँच जाए। हम सभी ने दूसरा रास्ता चुना और बढ़ गए चेनाप घाटी की ओर।
खर्क गाँव से चेनाप घाटी की दूरी लगभग 4 कि.मी. है। दो किमी. की चढ़ाई तो बहुत थका देती है लेकिन उसके बाद सब कुछ आसान हो जाता है। क्योंकि उसके बाद खूबसूरती हमरी थकान को दूर कर रही थी। दो किलोमीटर के बाद ही कई प्रकार के फूल आपको दिखने शुरू हो जाते हैं। हम उसी घाटी में रात गुज़ारने वाले थे, जहाँ लगभग 350 प्रजाति के हिमालयी फूल पाये जाते हैं। इसके बावजूद इस घाटी के बारे में उत्तराखंड के टूरिस्ट मैप में जिक्र तक नहीं है। साल 1987 में औली में पहले नेशनल खेल के शुभारंभ पर इस जगह को टूरिस्ट मैप में जोड़ने की माँग की गई थी। उसके बाद कई बार इसको विकसित और टूरिस्ट मैप में जोड़ने की बात तो की गई लेकिन जोड़ा नहीं गया।

फूलों की क्यारियाँ
चेनाप घाटी का सबसे बड़ा आकर्षण है, यहाँ प्राकृतिक रूप से बनी डेढ़ मील लंबी मेड़ और क्यारियाँ। देव पुष्प ब्रम्हकमल को अगर देखना है तो आपको चेनाप आना चाहिए। ये क्यारियाँ ब्रम्हकमल से भरी हुई हैं। इन क्यारियों को देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने इसे करीने से लगाया हो। इन क्यारियों को यहाँ फुलाना कहते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहाँ परी आती हैं और फूलों की खेती करती हैं। फूलों के अलावा यहाँ दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव और जड़ी-बूटियों का भंडार है। हम इन फूलों को देखते-देखते आगे बढ़े जा रहे थे और बेहद खुश हो रहे थे। यहाँ तो मन करता है कि एक जगह बैठा जाये और घंटो इन फूलों और पहाड़ों को निहारा जाए।
चेनाप घाटी के बारे में पुराणों में भी उल्लेख है। कहा जाता है कि जितनी खूशबू चेनाप के बुग्याल के फूलों में है उतनी खूशबू तो गंधमादन पर्वत और बदरीवन के फूलों में भी नहीं पाई जाती। कहा जाता है कि राजा विशाला ने हनुमान चट्टी में विशाल यज्ञ किया था। जिस वजह से बदरीवन और गंधमादन पर्वत के फूलों की खूशबू खत्म हो गई। दो साल पहले चेनाप घाटी को ट्रेक ऑफ द ईयर के लिए पर्यटन विभाग से शासन को फाइल भेजी गई थी लेकिन वो काम आज भी फाइल में ही दबा हुआ है। इसके बावजूद भी यहाँ काफी लोग आते हैं। चेनाप घाटी को देश-दुनिया भले ही ना जानती हो लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों का पसंदीदा टैक है। आसपास के शिखरों और बुग्यालों को देखने के बाद हम एक बार फिर से सफर पर निकल पड़े, खूबसूरत यादों को सहेजकर।

कब और कैसे जाएँ?

वैसे तो चेनाप घाटी की सुंदरता बारह महीनों रहती है। लेकिन जुलाई से सितंबर के बीच आना सबसे बेस्ट रहता है क्योंकि उस समय ये घाटी फूलों से गुलज़ार रहती है। चेनाप घाटी आने के लिए दो रास्ते हैं। इनमें सबसे सही यही रहता है कि एक रास्ते से आएँ और दूसरे से जाएँ। पहला रास्ता थैंग गांव के घिवाणी तोक और दूसरा रास्ता मेलारी टाॅप से होकर जाता है। मेलाॅरी टाॅप से हिमालय की दर्जनों पर्वत श्रंखलाओं को नज़ारा देखते ही बनता है। इसके अलावा बद्रीनाथ हाइवे पर बेनाकुली से खीरों और माकपाटा होते हुए चेनाप घाटी पहुँचा जा सकता है। ये 40 कि.मी. लंबा ट्रेक है। साल 2013 में जब फूलों की घाटी जाने वाला रास्ता ध्वस्त हो गया था तो लोग यहाँ आने लगे। तब से ही लोग इस घाटी के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं।



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