4200 मीटर की ऊंचाई से दिखाई देती है छिपला_केदार की अद्भुत खूबसूरती
छिपला केदार, जो कि पिथौरागढ़ जिले में है। पिथौरागढ़ समुद्र तल से 1,645 मीटर की ऊंचाई पर है और उत्तराखंड का क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से तीसरा सबसे बड़ा जनपद है।
इस जिले में नंदा देवी, त्रिशूल, राजरंभा, पंचाचूली व नंदाखाट आदि हिमालयी चोटियां, मिलम, रालम व नामिक ग्लेशियर तथा विशाल गोल्फ कोर्स, खूबसूरत पहाड़ व घास के मैदान-बुग्याल पिथौरागढ़ की खूबसूरती को बढ़ाते हैं। इसके अलावा पिथौरागढ़ के इर्द-गिर्द चार कोटें यानी किले मौजूद हैं, जिन्हें भाटकोट, डूंगरकोट, उदयकोट तथा ऊंचाकोट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि कभी यहां सात सरोवर स्थित थे, जिनके सूखने से अब यह क्षेत्र पहाड़ी घाटी के रूप में बदल गया है।
छिपला केदार के बारे में
समुद्र तल से लगभग 4200 मीटर की ऊंचाई पर बरम कस्बे से लगभग 50-55 किलोमीटर की कठिन पैदल चढ़ाई के बाद छिपला कोट में यह बुग्याल क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता के साथ देवी-देवताओं का निवास स्थान भी माना जाता है। जिस वजह से भगवान केदार के नाम से इसे छिपला केदार नाम से भी जाना जाता है। माता मैणामाई और पिता कोडिया नाग से जन्म लेने वाले केदार देवता दस भाई-बहन थे। तीन भाइयों में केदार सबसे छोटे थे। उदैण और मुदैण भाई और होकरा देवी, भराड़ी देवी, कोडिगाड़ी देवी, चानुला देवी, नंदा देवी, कालिका देवी, कोकिला देवी बहनें थी। बहनों में कोकिला देवी सबसे छोटी थी। कोकिला देवी, छिपला कोट के हृदय में स्थित गांव कनार में विराजमान हैं। छिपला जात यात्रा कोकिला कनार मंदिर से शुरू होती है।
दस हजार फुट की उंचाई पर स्थित गारापानी से आगे बढ़ने पर दो खूबसूरत झील सिन्स्या व मिन्सया नजर आती हैं। इस सरोवर में जनजातीय लोग सामूहिक पूजा करते हैं, जिसे जात कहा जाता है।आगे बुग्यालों में सालम पंजा, कुटकी, मीठा, कीडा-जड़ी, डोलू, टाटरी जैसी विभिन्न जड़ी-बूटियां यहां मौजूद हैं। इन्हीं बुग्यालों से शुरू होता है आकर्षक ब्रह्मकमल का मैदान। खम्पाधार जिसे जारचौर भी कहते हैं एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल है। जहां पूजा अर्चना कर ब्रह्मकमल अर्पित किया जाता है। यहां से आगे का मार्ग काफी कठिन है। इस तीखीधार से धीरे-धीरे नीचे उतरने के बाद सामने के टीले पर चढ़ते ही पर्यटक अपने को झीलों से घिरा पाते हैं।
छिपला केदार पर की जाने वाली पूजा
छिपला केदार जाने के लिए सबसे पहले सेराघाट से जाना पड़ता है, जिनका ब्रतपन या जनेऊ होना होता है, उन्हें घर से ही नगे पांव पैदल जाना होता है। अन्य श्रद्धालु चप्पल पहन कर जा सकते हैं, बिना ब्रतपन वालों को छिपाला केदार जाने की अनुमति नहीं होती है। जनेऊ वाले घर से सफ़ेद कपडे पहनकर गले मे घंटी लगाकर, भकोर बजाते हुवे छिपला केदार की तरफ रास्ते भर शंख बजाते हुए जाते हैं। रास्ते में देवी देवता भी अवतरित होते रहते हैं। इस मंदिर में कोई बाहरी सामान नहीं ले जा सकते हैं। इसके अलावा चमड़े का सामान ले जाना भी मना होता है, फिर चाहे वह पर्स या बेल्ट ही क्यों न हो। फल को छोडकर अन्य किसी भी तरह की खाद्य सामग्री को भी मंदिर में लाना मना है।
यहां कैसे पहुंचें –
दिल्ली से मुनस्यारी की दूरी लगभग 543 किलोमीटर है और नैनीताल से 260 किलोमीटर है। दिल्ली से मुनस्यारी की यात्रा रेल, बस या टैक्सी के माध्यम से की जा सकती है। यहां से छिपला केदार ट्रेक की शुरूआत की जाती है।
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